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शिवा बावनी

शिवा बावनी सारस से सूबा करवानक से साहजादे, .. मोर से मुगलमीर धीर हो धचैं नहीं। बगुला से बंगस बलूचियो बतक ऐसे, काबुली कुलंग याते रन में रचें नहीं । भूषन जू खेलत सितारे सिकार सिवा, . साहि को सुवन जाते दुवन सँचै नहीं। वाजी सव बाज से चपे चंगु चहूं ओर, सीतर तुरुक दिल्ली भीतर बचें नहीं ॥५०॥ भावार्थ शाहजी के पुत्र शिवाजी सितारे में शिकार खेल रहे हैं। मुसलमान सूबेदार सारस के समान हैं । शाहज़ादे गौरैया पक्षी हैं । मुग़ल श्रमीर मार हैं । यह भय से धीरज नहीं धरते हैं । बंगस बगुले हैं, बलूची बतक है और काबुली कुलंग है। यह रण स्थान में नहीं पाते हैं। दुष्ट लोग फिरते हुए नहीं दिखाई देते हैं। शिवा जी बाज के समान घोड़ों को चंगुल में चपेट रहे हैं। उनके मारे दिल्ली के भीतर कोई तुर्क (मुसलमान) रूपी तीतर नहीं बचने पाता। टिप्पणी करवानक=गौरैया पक्षी। ध=धरें । दुवान दुर्जन । बाजो-घोड़े। संचै-संचार करते, फिरते। बेद राखे विदित पुरान राखे सार युत, . राम नाम राख्यो अति रसना सुघर में। .