पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/६७

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शिवा बावनी

शिवा बावनी पापी घाले धरम सुपथ चाले मारतंड, करतार प्रन पाले प्रानिन के चंड को॥ भूषन भनत सदा सरजा सिवा जी गाजी, म्लेच्छन को मारै करि कीरति घमंड को। जग काज वारे निहचिंत करि डारे सब, भोर देत आसिष तिहारे भुज दंड को ॥५२॥ भावार्थ हे धर्म वीर शाह-पुत्र महाराज शिवाजी, आपने म्लेच्छों (मुसलमान) को मार कर कीर्ति और मान पाया है। पापियों का बध करके सुन्दर-मार्ग पर सूर्य को चलाया है। परमेश्वर की प्रतिक्षा तथा प्राणियों की शक्ति का यथेष्ट पालन किया है। इस असीम उपकार के बदले सातों पर्वत, चारों दिशाओं के हाथी, पाताल का वाराह, शेष को धारण करनेवाला कच्छप, सूर्य पृथ्वी धारण करनेवाला शेष और चिंता रहित साधारण जनता सभी नित्य प्रातःकाल आपके पाहु-युग्म को प्राशी- र्वाद देते हैं। टिप्पणी ___ करतार प्रन परमेश्वर की यह प्रतिज्ञा है कि जब जब धर्म की हानि और अधर्म की रडि होती है, तब तब दुष्टों का दमन करने तथा सजनों को सुख देने के लिए वह संसार में अवतीर्ण होते हैं। शिवाजी ने परमात्मा के इस प्रण को पूरा किया। नगेस पहाड़ । ककुभ-गजेस=दिशाओंके हाथी । कोल बाराह, शूकर । घाले-मारे । चंड-बल । जगकाम वारे साधारण जनता। बाब मगज प्रसाद खन्ना के प्रबन्ध से हिन्दी साहित्य प्रेस प्रयाग, में छपा।