पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/८

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शिवा बावनी

४ शिवा बावनी रही है। फ़ौज की धूम के मारे इतनी धूल आकाश में छा रही है कि सूर्य घूल से ढक जाने के कारण एक छोटे तारे के समान मालूम होता है, और जिस प्रकार थाली में पारा हिलता है, उसी प्रकार शिवाजी की सेना के भार से समुद्र हिल रहा है। टिप्पणी यह उपमा अलंकार है। जब दो वस्तुश्री : भिन्नता होते हुए रूप, रंग अथवा गुण में से किसी एक के साथ समानता दिखाई जाती है, तय रुपमा अलंकार होता है । जिसको समानता की जाती है, वह 'उपमेय' है, जिससे उपमा दी जाती है, वह अपमान' है, जिस अर्ध में समानता देते हैं, वह धर्म है, और जिस शब्द का रहायना से समानता बतलाई जाती है, वह 'वाचक है, यहां पर 'नरनि' उपमेय 'तारा' उपमान 'सो' वाचक और 'छोरा' जो गुप्त है, धर्म है। यह छन्द मनहरण है। इसका प्रत्येक चरण ३१ अक्षर का होता है। १६ और १५ अक्षरों पर विराम होना है और अन्त का अक्षर दोघे रहता है। सरजा-मालोजी की उपाधि मरजाह थी । “मरना" मरजाद का अपभ्रश है, मरजा का अर्थ सिंह भी है। जल कोलाहल । फैज-फैन्तने से। खैल भैल खलभल, अनुभास के लिये ऐसा रूप कर दिया गया है। बाने फहराने घहराने घंटा गजन के, माहीं ठहराने राव राने देस देस के। नग महराने ग्राम नगर पराने सुनि, बाजन निसाने सिवराज ज नरेस के॥