पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१०१

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शृङ्गारनिर्णय। ध्यानही सो हिलि हिलि । एक दुख तेरी है टुखारी नत्त ग्रामप्यारी मेरो मन तोसों जित प्रा. वत है मिलि मिलि ॥ २६८ ॥ लहलह लता डहडह तक डारै गहगह भयो मजन के आयो कौन वरिहै । चहचह चिरी- धुनि कहकह के किन की पहलह बनसोर मुनि ते अखरि है ॥ दास यह यहहीं पवन डोलि मई महँ रहरह यहई सुनावत दवरि है । सहमह समर की वहवह बीज सई तहँ तहूँ लिय प्रान लौवे की खबर है ॥ २६६ ।। दसौ सेद-दोहा। दरसन सकल पुकार पुनि इन तिहुन में मानि चहूं भेद में दास पुनि दशौ दसा पहिचानि ॥ लालस चिन्ता गुनकथन स्मृति उहेग प्रलाप । उन्मादहि व्याधिहि गनो जड़ता मदन सँताय । लालसादसा। नैन बैन मन मिलि रहे चाचो मिलन सरौर । कवन प्रेम लालसदसा उर अभिलाख गभौर ॥