पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शृङ्गारनियं। तन की छवि न्यारी। मञ्जु मनोहर बार को बा- नक जागि किये अखिया रतनारी । होत बिदा महि कण्ठ लगावन जाहु बिसाल प्रभा अधि. कारी। बे सुधि श्रीमनमोहन की मन आनतही करें बेसुधि भारी ॥ ३०६ ॥ स्मृतिदसा--दोहा जर इकाग्रचित करि धरै मनभावन को ध्यान । सुस्मृतिदसाले हि कहत हैं खिलखि बुद्धिनिधान॥ यथा सवैया । स्याम सुभाय मैं नेह निकाय में गये राधिका जैसौ। राधेि करे अब राधे जमाधी मैं प्रेम प्रतौति भई तन सौ ॥ ध्यानही ध्यान तें ऐसो भयो अब कोज कुतर्क करे यह कैसौ। जानत हौं इन्है दास मिल्यौ कहूं मंत्र महा मर पिण्ड प्रवेसी ॥ ३११ ॥ राधिका आधिक नैननि मंदि हियेही हिये हरि की छवि हेरति। मोरपखा मुरली बनमाल पितम्बर पावरी में मन फेरति ॥ गाडू बजादू