पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१०६

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'शृङ्गारनिर्णय । तरैयन की जू लसै छविछाई ॥ दास नये जुगनू मग फैले बहै रज सौ दूतहूं भरि आई। चोवन है किये घाम अनोखो ससौन अलौ यह है सबिताई ॥ ३१५ प्रलापदसा दोहा । सखिजन सो के जड़नि सो तनमन भयौ संताप । मोह बैन बकिबो करै ताको कहत प्रताप॥३१६॥ यथा सवैया। तिहारे वियोग से योस बिसावरी बावरी सी भई डावरी डोले । रसाल के बोरनि भौंरनि बूझती दास कहा तज्यो नागर खरी हार हरी हरी डार चितै बरशती बरौ बरौ होले । अरी अौ बौर नरी नरौ धौर भरी भरी पौर घरी घरी बोले ॥ ३१७ ॥ चन्दन पर लगाय के अङ्ग जगावति भागि सखी बरजोरै । ता पर दास सुवासन ढारि के देति है बारि बयारि भाको ॥ पापो पपीहा जोहा थके तुव पी पी पुकार करै उठि भोरै । 1