पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१०७

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शृङ्गारनिर्णय। देत कहे हा दहे पर दाह गई करि जाहु दई के निहोरे ॥ ३१८॥ जाति में होति मुजाति कुजाति न काननि फोरि करो अधसासौ। केवल कान्ह की प्रास - जियों जग दास करो किन कोटिन हाँसौ ॥ नारि कुलीन कुलौननि से रमै मैं उनमें चच्यो एकन ऑसौ । गोकुलनाथ के हाथ विकानी हौं वे कुलहीन तो हौं कुलनासौ ॥३१६॥ उन्माददसा-दोहा। सो उनमाद दसा दुसह धरै बौरई साज रोड रोज निनवत उठ कर मोह मैं काज॥३२॥ यथा सवैया क्यों चलि फेरि बचायो न क्योहूं कहा बलि बैठे विचारो बिचारनि। धीर न कोज धरै बल- और चढ्यो बजनौर पहार पगारनि ॥ दास ज राख्यो बड़े बरखा जिहि छांह में गोकुल गाद गुआरनि । छैल जू सैल सो बूड़या च है अब भा- वती के अँसुआन के धारनि ॥ ३२१ ॥