पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१०८

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शृङ्गारनिर्णय। के फूलन पुनः वित्त । तो बिन बिहारी मैं निहारी गति औरई में बौरई के अन्दनि अमेटत फिरत है । दाडिम दास दायौ दोनों भरि चूमि मधु रमनि लपेटत फिरत है ॥ खंजनि चकोरनि . रेवा पिक मोरनि मराल सुका भोरनि समेटल फिरत है । कासमोर हारनि को सोनजुही भारनि को चंपक की डारनि को भेटत फिरत व्याधि दसा दोहा। ताप दुसरई खास अति व्याधि दसा मैं लेखि । आहिचाहि बकिबो करै वाहिनाहि सब देखि। यथा कबित्त । एरे निरदई दई दरस तो दे। वह ऐसौ भई तेरे या बिर ज्वाल जागि के। दास पास पास पुर नगर के बासौ उत माहू को जानति निदाहै रह्यो लागि कै ॥ लै लै सौर जतन मि- माए तन ईठि कोउ नीठि ढिग जावे तज आवै