पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१२

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शृङ्गारनिर्याय । ११ गाजमुंड गावै तो गजन को बड़ाई को । ऐरी प्रानम्यारो तेरे जानु के सुजान बिधि ओम दोनो आपनो तमाम सुघराई को ॥ दास कहै रंभा सुरनायक-सदनवारी ने कह न तुली एको अंग को निकाई को । रंभा वाग कोने को जी वाके ढिग सोने को है सौस आरि आवै तीन पावै समताई को ॥ ३४ ॥ नितम्ब वर्णन । तो तन मनोजही की फौज है सरोजमुखी हाव भाव सायकै रहे हैं सरसाय के । तापर सलोनो तेरे बस हैं गोविन्द प्यारी मैनहू के बस भयो तेरे ढिग जाय कै ॥ तिनहू गोबिन्द ले सु- दरसन चक्र एक कौन्हों बस भुवन चतुर्दस इ- नाय कै। काहे ना जगत नीति को मन राखै मन दुर्लभ दरस है नितम्ब चक्र पाय के ॥३५॥ कटि वर्णन । सिंहिनी औ मृगिनी कौ ता ढिग जिशिर कहा बारह मुरारिह तें खौनी चित धरि तू ।