पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शृङ्गारनिय। . है। नाभिथली तें जुरे फल ले कि भलो र स- रान नली उकली है कुच बर्णन! गाढ़े गड़यो मन मेरो निहारि के कामिनि तेरे दोऊ कुच गाढ़े । दास मनोज मनो जग जोति के खास खजाने के कुंभ दै काढ़े ॥ च- क्रवती है एकचित मानो मजोम के जोम दुई उर बाढ़े । गुच्छ के गुम्बज के गिरि के गिरि- राज के गर्व गिरावत ठाढ़े ॥ ३६॥ भुज वर्णन खूब सुहाय खराद चढ़ायमी भावती तेरी भुजा छवि जाल हैं। सोभा संरोबर तू है सही तहँ दास क है ये सकंज मृनाल हैं ॥ कंचन की लतिका तू बनी दुहुं छाये विचित्र सपनव डाल हैं। अंग में तेरे अनंग बसै ठग ताहि के पास की फांसौ बिसाल हैं ॥ ४० ॥ कर वर्णन। पत्र महारुन एक मिलाय शुखाब कली । ३