पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१७

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शृङ्गार निर्णय । घर ल लाई धरे रहत सुबाय है ॥ हीरा की है. रानी उड़गन की उड़ानी अझ मुकुतन हूं को छवि दीनी मुक्ताय है ! प्यारी तेरे दान अ- नारदाने कहि कहि दाना है के कवि क्यों अनारी कहवाय है ॥ ४६ हास वर्णन । दास मुखचन्द्र की सी चन्द्रिका बिमल चार चन्द्रमा की चन्द्रिका लगत जासें सैलौ सौ । बानी को कपूर धूर ओढ़नी सी फहराति बात बस आवत कपूर धूर फैली सौ ॥ बिज्जु सौ च- मकि महताब सौ दमक उठे उमगति हिय के हरख को उजेली सौ । हामौ हेमबरनी को फांसो सौ लगत ही में सांवरे दृगन आगे फूल त चसे नौ सौ॥४७॥ बानो वर्णन सवैया। देव मुनीन को चित-रमावन पावन देव- धुनी-जल जानो । दास सुने जिहि जख मयूख पियूख को भूख भगो पहिचानो ॥ काकिल को