पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२१

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शृङ्गारनिय। मुखमंडन वर्णन कवित्त । आवै जित पानिप समूह सरसात नित माने जलजात मुतौ न्यायही कुमति हो । दास जा ट्रप को दरप कंदरप को है दरपन सम ठाने कैसे बात सति हो । और अबलानन में राधिका को अानन बरोबरी को बल कहै कबि कूर अति हो । पैये निस बासर कलं. कित न अंक ताहि बरने मयंक कबिताई की अपति हो ॥ ५६ ॥ मांग वर्णन सवैया चौकनी चारू सने हसनी चिल के दुति मेचकताई अपार सो । जीति लयो मखतूल के तार तमौतम तार दुरीफ कुमार सो ॥ पाटी दुहूं बिच मांग को लाली बिराजि रही यो प्रमाबि- सतार सो । मानो सिँगार की पाटौ मनोमव सौंचत है अनुराग की धार सों ॥ ५७ ॥ केस वर्णन कवित्त । घनस्याम मनभाये मोर के पखा सोहाये रस बरसाये घन-सोभा उमहत है । मन अरु-