पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२२

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शृङ्गारनिीय। झाये मखतूल तार जानियत मोह उपजाये अहिछोने से कहत है। दास यातें केस के स. रिस हैं मतिन्दछन्द मुख अरविन्द पर परई रहत है। याही याहो बिधि उपमान ये भये हैं जव और कहा श्यामता है समता लहत है ।। बेनी वर्णन वह मोच्छदेनी पातकिन को खिनक बीच साधु-मन बाधे यह कौन धौं बड़ाई है। मरे मरे लोगनि अमर करै वह यह जीवत को मार करै गुन की कसाई है । सिरतें चरन लौं मैं नौक को निहास्यो दास बेनौ कै त्रिधारा यामे एक ना लखाई है। बिमको सवारी भयकारी कारी सांपिन सौ एरी पिकबैनी यह बेनी क्यों कहाई है ॥ ५६॥ अलक पै अलिवन्द भाल पै अरधचंद पै धन नैनन मै बारों कंजदल मैं । नासा कोर मकर कपोल विम्ब अधरन दास्यो वायो दसिनि ठोढ़ी अम्बफल में ॥ कंबु कंठ भुजन सृनाल