पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२४

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शृङ्गार परनियाय २३ सबै कछु पौवति खाति है। दास जू केलि थलो- हि में ठौठो बिलोकति 'बोलति औ मुसकाति है:॥ सूने न खोलति बेनी सुनैनी ब्रती लै बि. तावति बासर राति है । पाली वो जाने न ये बतियां यो तिया पियप्रेम निबाहति जाति है । वहारिज यथा। हेम को कंकन हौरा को हार छोड़ावती है द सोहाग असीसनि । दास लला को निछा. वरि बोलि जु मागै सुपाय रहै बिस बोसनि । हार में पौतम जौलों रहै सनमानत देसनि के अवनीसनि । भीतरौ ऐबो सुनाय जनी तमलों लहि जाती धनौ बकसीसनि ॥६५॥ माधुर्ज यथा। प्रीतम प्रौति मई उनमाने परोसिन जाने सुनौ तिहि सो ठई । लाज सनी है बड़ी नि. भनी बर नारिन में सिरताज गनौ गई । रा- धिका को ब्रज को जुवती कहै याहि सोहाग समूह दई दई । सौति हलाहल सौतिकहै औ सच्ची कहै सुंदरि सौल सुधामई ॥ ६६ ॥