पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२५

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शृङ्गारनिया il जेष्ठा कनिष्ठा भेद दोहा। दूक अनुकूलहि दच्छ सठ धृष्ट विनि अंग बाम। प्यारौ जेष्ठा प्यार बिन कहे कनिष्ठा बाम ॥६॥ साधारण जेष्ठा यथा सवैया। प्रफुलित निर्मल दीपतिवंत तू आनन द्योस नियो इक टक । प्रभा रद होत है सारद कंज कहा कहिये तहँ दास विवेक ॥ चितै तिय ती. कुच कुंभ के बीच नखच्छत चन्दकला सुभ एक ! भये हत सौतिन के मुख भारदी रैन के पूरन चंद अनेक ॥ ६८॥ दक्षिण की जेष्ठा कनिष्ठा सवैया। दास पिकानि के दूजो न कोप भले संग सौ. ति के सोडू है प्यारी । देखि करोट सुऐंचि अतोट जगाये ले अोट गए गिरधारी॥ पूरन काम के त्योही तहाई सो आय कियो फिरि कौतुक भारी । बोलि सु बोल उठाय टुहूं मन रंजि के गंजिफा खेल बगारी ।। ६६ ।। वह नायक की जेष्ठा कक्षित ? हौं हूं हुती संग संग अंग अंग रंग रंग भू-