पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२६

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शृङ्गारनिर्णय। घन बसन आज गोपिन सँगारी । महल स- राय में निहारत सबन तन ऊपर अटारौ गये लाल गिरधारी रो॥ दास तिहि औसर पठाय कै सहेली को अकेलियै बुलाई वृषभान की कु- मारी री। लाल मन बूड़िबे को देवसरि सोती भई सौतिन चुनौटी भई वाकी सेत सारीरी। सठ की निष्ठा सवेया। नैनन को तरसैये कहा लों कहा लोहिया बिरहागि में तैये। एक घरी ना कह कल पैये कहां लगि प्रानन को कलपैये ॥ आवै यहै अब दास बिचार सखी चलि सौतिहु के गृह जैये । मान घटे. ते कहा घटि है जु पै प्रानपियारे को देखन पैये ॥ ७१ ॥ कृष्ठ की जेष्ठा यथा । छोड़ि सबै अभिलाख भरोसो वै कैलो करें किन साझ सबेरे । पाइ सोहागिन को तनु छाड़ि के भूलि के मेरे सु आयडै नैरे ॥ दीने दई के ल है सुख-जोग न दास प्रयोग किये बहु DE