पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३

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शृङ्गारनिर्णय । हिन्दूपति पति देत म्लेच्छ हति मोक्षगति दास ताको दास है ॥२॥ दोहा । श्रौहिन्दूपनि-रौमि हित समुझि ग्रन्थ प्राचीन । दास कियो शृङ्गार को निरनय सुनो प्रबीन॥३॥ सम्बत् विक्रम भूप को अट्ठारह से सात माधव सुदि तेरस गुरौ परवर थल विख्यात॥४॥ वन्दौं सुकविन के चरन अस सुकविन के ग्रन्थ । जातें कछु हौंहूं लह्यौ कविताई को पन्थ ॥ ५ ॥ जिहि कहियत शृङ्गाररस ताको जुगल विभाव। आलम्बन इक टूसरौ उद्दीपन कविराव ॥ ६ ॥ बरनत नायक नायिका आलम्बन के काज उद्दीपन सखि दूतिका सुग्व-समयो सुखसाज । नायक लक्षण। तरून मुघर सुन्दर सुचित नायक सुहृद बखानि । भेद एक साधारनै पति उपपति पुनि जानि ॥ - कवित्त मुख सुखकन्द लखि लाजै दास चन्द भोप साधारण नायक यथा- 1