पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३१

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। शृङ्गारनिर्णय महिमा बहुतेरी। कीजै प्रसाद पर जिहि कैसई नंदकुमार ते भावरी मेरी ॥ है यह दास बड़ो अभिलाष पुरै न सकौं तो कहीं दूकबेरी । चेरी करो तो करो न करो मुहि नंदकुमार कि चेरी की चेरी ।८७ 11. धोरख यथा सवैया । होड़ उज्यारो गवारो न हो जु प्यारो लगे सुम ताहि निहारो। दौने न नैन तिहारे से मे- बइ को कहा करता सों न चारो॥ आय कही तुम कान में बात न कौनह काम को कान्हर कारो । मोहि तो वा मुख देखे बिना रबिहूं को प्रकास लगे अंधियारो॥८॥ प्रेमाशमा यथा सवैया । दास जू लोचन पोच हमारे न सोच सकोच विधाननि चाहै। कूर कहै कुलटा कहै कोऊ न केहूं कई कुलसाननि चाहे । ताते सनेह में बूडि रहीं इतनेही में जानी जो जानन चाहैं। आनन दै कहै भाड़ गोपाल को मानन चाहिबो आन न चाहैं । ८॥