पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३३

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शृङ्गारनिर्णय। लों। चौको बँधी भीतर लोगाइन को जाम जाम बाहिद अथादून उठति अघरात लो॥ दास पैरु बसौ पैरुहान को डर हियो चलदल पात लों है तोसों बतलात लो । मिलन उपाइन को दूढ़िवो कहा है आली हों तो तजि दोनो हरि दरसन घात लों ॥३॥ असाध्या जढा यथा। देवर की त्रासन कलेवर कैंपत है न सामु डर मासिनि उसास लै सकति है। बाहिर के घर के परोस भरनारिन के नैनन में कांटे सौ सदाही कसकति हौं ॥ दास नहि जानो हौं बिगारो कहा सबही को याही पौर बौर नित पेट पकरति हौं। मोहि मनमोहन मिलाय इत देती मैं तो वह ओर अबलोकति जकति दुख साध्या लक्षन दोहा। साध्यकरै पिय दूतिका विविध भांति समुझाइ टुख साध्या ताको कहैं परकीयन में पाद