पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३५

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शृङ्गारनिया । उदोधिता साध्या सवैया नायक हो सब लायक हो जु कसै सो सबै तुमको पचि जाहौं। दास हमे तो उसास लिये उपहांस करें सब या इज माहौं । प्राय पदैनौ कहूं ते कोऊ तिथ गैल में छैल गहौ जिन बाहौं । दही दिना की तिहारो है बाह गई करि जाहु निबाहिही नाहौं ॥१८॥ परकीया भेद लक्ष यह ~~ दोहा। परकीया के भेद पुनि चारि बिचारो जाहिँ। होत विदग्धा लच्छिता मुदिता अनुसयनाहि ॥ विदगधा नक्षन दोहा। विविध विदग्धा कहत है कौन कविन विवेक । बचनविदग्धा एक है क्रियाविदग्धा एक॥ १० ॥ वचनविदग्धा यथा सवैया । नौर के कारण आई अकेलिये भौर पर सँग कौन को लीजै। ह्यांऊँ न कोउ गयो दिव- सोज अकेले उठायः घरो पट मौजे गउआन को ल्याय सलो जल छांह को प्याडू- ॥ दास इले