पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३६

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भुजान उरोजन शृङ्गारनिर्णय। ये पोजे । एतौ निहोरो हमारो हरी घट जपर नेकु घरो धरि दीजै ॥ १ ० १ ।। क्या विदगधा यथा सवैया। कसिव मिस नौबिन के छिन तो अंग अंगनि दास दिदाय रही । अपनेही को गहि जानु सो जानु मिलाय रही । लल- चौहैं हँलों हैं ल जौहैं चितै हित सों चित चाय बढ़ाय रहौ । कनखा करिके पग सो परिक मुनि सूने निकेत में जाय रही॥. १०२ ॥ गुप्ता लक्षन दोहा जब तिय सुरति छपावही करि विदग्धता बाम। भूत भविष ब्रतमान सो गुप्ता ताको नाम भूत गुप्ता यथा सवैया। पठावत धेनु टुहावन मोहि न जाहुं तो देवि करो तुम तेह। छुड़ाय गयो बछरा यह बैरि मरू करि हौं गहि ल्याई हौं गेहु ॥ गई थकि दौरत दौरत दास बरोट लगे भई बिपन्न देहु । चुरी भई चूरि भरी भर्दू धूरि परी टुरि मुक्त हरो यह .