पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३७

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शृङ्गारनिर्णय। भविष्य गुप्ता सवैया। है हौं सकौं सिर तो कह भाभी पै ऊखु का खेत न देखन जैहो । जेहों तो जीव डरावन दे- खिहौं बौचहि खत के जाय छपहो । पैहों छ- रोर जो पातन को फाटहैं पट क्योंहूं तो हौं न डहौं । हौं न मौन जो गेह के रोस करेंगे सुहोस मैं तेरोई देहौं । १०५ ॥ वर्तमान गुप्ता सवैया अबही की है बात हौं न्हात हुती अचका गहिरे पग जात भयो । मोहि ग्राह अथाह को लेही चल्यो मनमोहन दूरिहि तें चित्यो ॥ द्रुत दौरि कै पौरि के दास वरोरि कै छोपिक मोहि बचाय लयो। इन्हें भेटती भेटिहौं तोहिँ अली भयो आज तो मो अवतार नयो ॥ १०६ ।। लक्षिता लञ्चन दोहा। लक्षितासु जाको सुरति हेत प्रगट है जात । सखी व्यंग्य बोलै कहै निज धीरज धरिबात । सुरति लक्षन यथा सधैया । साधक बेनी भुअंगन के कुच के चहुं पासन