पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३९

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शृङ्गारनिर्णय मुहिता लक्षन दोहा। बहै बात बनि आवई जो चितचाहत होडू तातें आनन्दित महा मुदिता कहिये सोडू । यथा सवैशा भोरहौ आनि जनौ सो निहोरि के राधे को मोहिं माधो मिलावै । ता हित कारने भौन गई बहु आप कळू करिबे को उपावै ॥ दास तहीं चलि माधो गये दुख साधेवियोग को ताहि सुनावै । पाथ के सूनो निलै मिलै दूनी बढ्यो सुख दूनो टुहूं उर लावै ॥ ११२ ॥ अनुस्यना लक्षण - दोहा। कैलिस्थानबिनासिता भावस्थान अभाव अरु संकेतनिप्राप्यता अनुसयना सति स्थान बिनामिता यथा- सवैया। दास जू वाकी तो हार को सूनो कुटी जरै यातें करै दुख थोरै। भारी टुवारी अटारो चढ़ी यहै रोके हनै छतिया सिर फोरै हाइ भरै कई लोगन देखि अरै निस्दै कोऊ पानी ले दौरे। आग लगी लखि मालिनी के लगी आग है ग्वालिन के उर औरै ॥ ११४ ॥ नाव