पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४

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गृङ्गारनिर्णय । चीप सो चुभत नैन गोप-तनुजान के । तैसो सब सुरभित बसन हिये की माल कानन के कुण्डल बिजायठ भुजान के ॥ नासा लखे सुक- तुण्ड नाभी पै सरस कुण्ड रद है दुरद-सुण्ड दे- रद त भुनान के । नल को न लीजै नाम काम को कहा काम आगे सुखधाम स्यामसुन्दर सु- पति लक्षण -दोहा। निजव्याही तिय को रसिक पतिताको पहिचान। आसिक और तियान को उपपति ताको जान॥ पति यथा--सवैया। छाड्यो सभा निसिबासर को भोजरे लगे मा- वन लाग प्रभाते। हासविलास तज्यो तिन सों जिन सो रह्यो है हँसि बोलि सदा ते ॥ दास भोराई-भरी है वही पै प्रयोग प्रबौनौ भनी गई या। आई नई दुलही जब तें तब तें लई लाल नई नई बातें ॥ ११ ॥ उपपति यथा। अलकावलि व्याल बिसाल घिरे जहँ चाल