पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४२

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शृङ्गारनिर्णय । सानी कहा कौनी तू अयानी तब तासों के ब- थानी या कहत अनखाय के। काहे को कुवा- तनि सुनावति हो मेरो बोर टरिगो तो हौंहो भरि ल्यावति हौं जाय के ।। १२० ॥ इति परकीया। अथ मुन्धादि भेद - दोहा । त्रिबिधि जु बरनी नायिका तेज त्रिविधि विसखि। मुग्धा मध्या कहत पुनि प्रौढ़ा ग्रन्थन देखि ॥ जोबन के आगमन तें पूरनता लो मित्त पञ्चभेद द्वै जात हैं चै मुग्धादि चित्त ॥१२२॥ मुग्धादि लक्षण सैसव जोबन सन्धि जिहि सो मुग्धा अवदात । बिन जाने अज्ञात है जाने जानो ज्ञात ॥१२३॥ साधारण सुरक्षा यथा-- सदैया। बालकता मे युवा मल को दल बोभाल ज्यों जुगुन के उजेरे । लक्ष लदोहैं नितम्ब उचो हैं नचोहैं से लोचन दास निबेरे ॥ जानिबे जोग