पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४७

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शृङ्गारनिर्याय। स्वकीया मध्या। नाह को नेह रंगी दुलही दृग नैहर गेह स- कोचनि साने। दास जू भौतरही रहै लाल तज लनिबे को रहैं ललचाने ॥ प्यो-मुख साम हैं रा. खिबे को सखियां अखियान को व्योत बिताने। चन्द निहारि नहीं बिकसै अरबिन्दन को कछु बात न माने ॥ १३५।। परको या अध्या-कवित्त । यौन भये उरज निपट कटि कौन भई लौन सिंगार सब सीखौ सखियान में। दास तन- दोपति प्रदीप के उजास कौन्हे बैरिन की नजरि प्रकास पवियान में॥ काम को कुलोलन को चरचा सुनत फिरै चन्द्रावलि ललिता को लीन्हे कखियान में। एक ब्रजराज को बदन द्विजराज देखिबे को दून लाज लाजमरी अश्वियान में। प्रौढ़ा सांधारण यथा वित्त सारी जरकम वागे घाँघरो घरों बेस छ- हर छबीली केस छोर लो छवान के पृथुल नि. ।