पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४८

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शृङ्गारनिर्णय। amo तम्ब लङ्क नाम अवलम्ब लौट गेंदुरी पै कलस कल सान के ॥ दास सुखकन्द चन्दब- दनी कमलनैनी गति ये गयन्द होनवारे कुर- बान के ! पी को प्रेममूरति सुरति कैसौ सूरति सुबास हाम पूरनि अवास बनितान के ॥१३८॥ प्रौदा स्वकीया यथा-सर्व -- सवैया । केसरिया निज सारी रंगै लखि केसरि-खौरि गोपाल के गातनि। दास चितै चित कुचबिहारी विछावति सेज नये तरु पातनि ॥ आवत जानि के सामने भोज मिलै पहिले ले बिरौ अवदा- सनि । बोते बिचारते भावती को दिन भावतो की मनभावति बातनि ॥ १३६ ॥ प्रौढ़ा परकीया यथा। भूलनि लागौ न ता मृदु भादूनि फूलनि तागौ गुलाबकती अब । दास सदास भाकोरन मोरत भौंर की बाय वहाय चलो अब ॥ जागि के लोग बिलोकि है टोकि है रोकि है राह सहार गली अब । ऐसे में सूने सखी के निलै बलि सोवो सभागन बाग भलो अब ॥ १४ ॥