पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/५

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शृङ्गारनिर्णय । -सवैया । जवाहिर जोति गहै। चमो बरुनौ बरछौ भुव खञ्जर कैवर तीच काटाछम है ॥ बसि मैन महा ठग ठोढ़ी की गाड़ में हास के पास पसार रहै। मन मेरे कि दास दिहाई लखो तहँ पैठि मि- ठाई लि आयो चहै ॥ १२ ॥ नायक भेद-दोहा। अनुकूलो दछिन सठो धृष्ठिति चोराचार दूक नारी सो प्रेस जिहि सो अनुकूल बिचार ॥ पति अनुकल यथा- सम्भु सों क्यों कहिये जेहि व्याहो है पार- बती औ सती तिय दोऊ। राम समान को चहै जीय पै माया को सौय लिये रहै सोज । दास जू जो यहि औसर होवती तेरोई नाह स. राइती बोज । नारि पतीब्रत हैं बहुतै पतिनौ. ब्रत नायक और न कोज ॥ १४ ॥ उपपति अनुकूल थथा ! तो बिन राग श्री रङ्ग वृथा तुव अंग अनङ्ग की फौजन को सौं। मुसक्यान सुधारस भोजन ।