पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/५१

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शृङ्गारनिर्णय। झाभारिया मन कैंगो खरी खनकैगों जुरी तनको तन तोरे। दास जू जागतौं पास अली- गन हांस करेंगौं सबै उठि भार॥ सौंह तिहारी हौं भागि न जाउगो पाई हौं लाल तिहाई धोरे। कलि की रैन भरी है वरीक गई करि जाहु दई के निहोरे । १४७॥ प्रौढ़ा सरति सवैया। दास जू रास कै खालि गई सब राधिका सोडू रही बॅग भू मैं । माढ़े उरोजन है उर बीच सुजानु को ऐचि भुजान दुहू मैं ॥ भोर भयो पिय सैन को सोनो न मेह को मौनो सकै करि टूमें। भीर बड़ीयै परै जिमि सोनो बनै न मैं. जावत राखत सूमैं ॥ १४८ ॥ मुनः सवैया। दीपकजीति मलौनी भई मनिभूषन जोति की पातुरिया है। दास न कोख-कली विकसी निज मेरी गई मिलि आगुरिया है ॥ सौरी लगै मुकतावलि तेज कपूर की धूरिन सी पुरिया