पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शृङ्गारनिया है। पौढ़े रहो पट ओढ़े इतो निसि बोले नहीं चिरिया चुरिया है ॥ १४६ ॥ इति वाहिकमा भेद। । अथ अवस्था भेद दोहा। हेत संजोग बियोग की अष्ट नायका लेरिख । तिनके भेद अनेक मैं का कछु कहों विसरिख । संयोग शृगार की नायका भेद । तियसँजोबा शृङ्गार की कारन तीनो जानि स्वाधिनपतिका अपर है बासकमज्जा मानि । अभिसारिका अनेक पुनि बरनत हैं कबिराव । स्वकिया परकीयान मिलि होत अनेकन भाव।। स्वाधीनपतिका लक्षन दोहा। स्वाधिनपतिका है वहै जाके बस है पीउ । होय गर्बिता रूप गुन प्रेम गर्ब लहि जीउ । स्वकीया स्वाधीन पतिका सवैया । माँग सबारत कॉगहि ले कचभार भिंगा- बत अंग समेत हो । रोम उठावत कुंकुम लेय के दास मिलाय मनो लिये रेत हो । बौरी