पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/५६

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शृङ्गार निर्णय । यथा सवैया। मावतो आवत ही मुनि के उड़ि ऐसी गई हद छामता जौ गुनौ । कंचुकी हूँ मैं नहीं म. ढ़ती बढ़ती कुच की अब तो भई दो गुनी ॥ दास भई चिकुरारन में चटकीलता चामर चारू तें चौगुनौ। नौगुनी नौरज ते मृदुता मुखमा मुख में ससि ते भई सौगुनी अभिसारिका लक्षन दोघा! मिलनसाज सब करि मिलै अभिसारिका सुभाय! पियहिँ बोलावै आपुकै आपुहि पिय पै जाय ॥ स्वकीया अभिसारिका कबित। रौझि जगमगे दृग मेरे या सिँगार पर ल. लित लिलार पर चारु चिकारों पर । अमल कपोल पर कामल बदन पर तरल तरोनन की मचिर रवारी पर ॥ दास पग पग दूनो देहटुति दग दग जग जग द्वै रही कपर धूर सारौ पर । जैसी बि मेरे चित चढ़ि आई प्यारी आज तेसिये तू चढ़ि आई बनि के अटारी पर॥१६५॥