पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/५९

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शृङ्गारनिर्णय। पगे हैं तो और को प्रेम पगावनवारी ? ॥ दास जू दूसरी बात न और इती बड़ी बेर-बितावन- वारौ। जानति हौं गई भूलि गोपाल गलौ यहि ओर की आवनवारी ॥ १७२ ॥ पुनः सवैया। तनिको तिनके खरके खरको तिनके तनको ठहरैवो करै । लखि बोलत मोर तमाल को डो- लत चाय सो चौंकि चितैबो करे। यह जानती ग्रौतम वहिँगे अधरात लों ज्यों नित ऐबो करे। अँखियान को दास कहा कहिये बिन कारनही अकुलैबों करें ॥ १७३ ॥ पुनः सवैया। आज अवार बड़ी करी बालम जी अब कै सखि भेटन पैहौं। के मनकाम सघूरन तूरन तो यह बात प्रमान करैहौं ॥ आतुर ऐवो करी जू न तो मग जोहत होतो दुखी बहुतै हौं । बा- पनौ ठौर सकेट बदौ तहँ हौंहो भले नित भेट कै. ऐ हौं ॥ १७४ ॥