पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/६५

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शृङ्गारनिर्णय नैननि देखतही हौं। फौजै कहा जो बनावी बांधि के दास कियो गुरु लोगन को सौं ॥ बैठा जू बैठो न सोच करो हिय मेरे तो रोम की जात भई दौं । जान्यो मैं मान छोड़ाईवे की तुमै आवतो लाल बड़ोये बड़ी गौं ॥ १८८ ॥ गुरुसान सांति सवैया। जान्यो मैं वा तिल तेल नहीं पहिले जब भामिनी भौंह चढ़ाई। कान्ह ज आज करामत कोन्ही कहां लों सराहों महा सुघराई ॥ दास बमो सदा गोपन मैं यह अङ्ग त वैदई कौने सि. ग्वाई। पाय लिलार लगाय लला तिथ नैनन को लियो ऐंचि ललाई ॥ १६०॥ साधारन मान मांति सवैया। आज ते नेह को नातो गयो तुम नेम गहो हौंई नेम गहोंगी। दासजू भूलि न चाहिय मोहि तुमै अब क्योहूं न हौंहूं चहौंगी ॥ वा दिन मेरे प्रजंक पै सोये ही हौं वह दाव नहीं पैलहौंगो मानो बुरो कि भलो मनमोहन सेज तिहारी में सोड़ रहौंगी ॥ १६१॥ -- a