पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/६९

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शृङ्गारनिर्णय। को प्रमान टरो सो। झूठो सँदेसिया औ सगु- नौती कहैयन को परखो एक परोसो ॥ दास जू प्रीतम की पतिया पतियात जो है पतियाइ मरो सो। भागभरी सोई छोड़ि दियो हम का गहिये अब काग भरोसो ॥ २० ॥ श्रागतपतिका। देखि प सब गात कटीले न ऐसे में ऐसी प्रिया सकै कोड के। आदर हैत उठे प्रति रोस है दास यो दीनदयालता जोड़ के ॥ कन्त बि. देसौ मिले सुख चाहिये प्रानप्रिया तू मिले किमि रोडू कै । जीवननाथ सरूप लख्यो पै हमै मलिनी निज प्रांखिन धोडू के ॥ २०२॥ सत्तमादि भेद दोहा। जितनी तिथ बरनी तिलाब तीनमति को जानि। तिन्हें उत्तमा मध्यमा अधमा नाम बखानि ॥ उत्तम मान बिहीन है लघु मध्यम मधिमान । बिनऽपराधही करत है अधम. नारि गुरुमान ॥