पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/७

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गृङ्गारनिय । मानन चन्द लखै बनितान के लोचन चाह च- कोर ॥ १८॥ बचन चतुर यथा। भौन अँधेरेइ चाहि अँधेरे चमेलो के कुञ्ज के पुञ्ज बने हैं । बोलत मोर कर पिक सोर जहा तहँ गुञ्जत भौंर घने हैं ॥ दास रच्यो अ- पने ही बिलासको मैन जू हाथन सो अपने हैं । कूल कलिन्दजा के सुख मूल लतान के बन्द बि. तान तने हैं॥१६॥ कियाचतुर यथा। जित न्हानथली निज राधे करोतित कान्ह कियो अपनो खरको । जित पूजा करै नित गौरि की वै तित जाय ये ध्यान धरै हर को ॥ इमि भेद न दास जू जानै कछू ब्रज ऐसो बम बुधि को बर को। दधिबेचन जैबो जितै उनको एई गाहक हैं तितके घर को ॥ २० ॥ सह लक्षण - दोहा। निज मुख चतुराई करै सठता विरचे आह व्यभिचारी कपटी महा नायक सह महचान॥२१॥