पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/७४

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शृङ्गारनिर्णय कदंबन के तुम कारों। कहूँ कंजकली विकसो यह होडू कहा तुम सो रहा गहि डारे । नित दास हा ल्यावही ख्याव अहो कछु पापना याको न भेद बिचारी । वह कौल सौ गोरी किसोरी कही औ कहा गिरधारन पानि ति- हावरा ॥ २१४ । खखी कम्म दोहा। मण्डन सन्दरसन्न हँसी संघटन सुभ धर्म मानप्रबर्जन पत्रिकादान सखिन के कम। ॥२१५॥ उपालका सिच्छा स्तुती विनय यक्षा उक्ति । बिरहनिवेदनजुत सुकवि बरनत हैं बहु जुक्ति । इन बातनि पिय तिय करै जहँ: सुऔसह पाई। बहै स्वयंदूतत्व है सो हौं कहौं बनाय ॥२१॥ मण्डन यथा- - स्वैया। प्रीतम माग सँवारी सखौ सुधराई जनायो प्रिया अपनी है । प्यारीकपोल को चित्र बना- बत प्यारे विचित्रता चारु सनी है ॥ दास दुहूं को टुहूं को सवारियो देखि लधो सुख लूटि HER