पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/७६

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शृङ्गारनिर्याय । की पारसी में चपकाय गयो बहराव कै॥ धूमि घरोक में आय को कहा बैठी कोलन बन्दन लाय के दर्पन त्यो तिय चायो तहों सिर नाय रही मुसकाय लजाय कै ॥ २२१ ॥ संघटन यथा। लेहु जू ल्याई सुमेह तिहार पर जिष्टि नेह सैंदेह खरे मै भेटो भुजा भरि मेटो व्यथा निसि मेटो जुतौ सब साध भरै मै सम्भु ज्यों आधेही अङ्ग लगावो बसायो कि श्रीपति ज्यों हियरे मै। दास भरी रम केलि सकेलीये आनंदवैलि सौ मेलि गरे सै ॥ २२२ ॥ आपने आप गेह के द्वार तें देखा देखो के रहै हिलि दोज । सोही अध्यारो कियो मामि मेघनि मैन के बान गए खिलि दोऊ ॥ दास चितै चहुंघा चितवाय सो औसर पाय घले पिलि दोज। प्रेम उमंडि रहे रसमंडित अंतर की मड़ई मिलि दोऊ ॥ २२३ ॥ मानप्रबर्जन यथा काबि। पंकज-धरन को सौं जानु सुबरन को सौं