पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/७७

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1 शृङ्गारनिर्णय । लंक तनु को सौं जाकी अलख महति है। - बली तरंग कुन सम्म जुग संग को सौं हारावलि गंग को सौं जो उत्त बहति है ॥ श्रुति संनुधारी वा बदन द्विजराज को सौं एरी प्रानम्यारो कोप कापै तू गहति है । साँची हौं कहति तुव बेनी सौ. कमलनेनी तेरौ सुधिमधा मोहिँ ज्यावति रहति है ॥ २२४ ॥ पत्रिकादान यथा सवैया। कैसो रौ कागद ल्याई नई ? पतिया है दई वृषभानकुमारी । भौगो सु क्यों ? सुआन के धारे जरी कहि कैसे? उसासन जारी ॥ पाखिर दास देखाई न देत ? अचेत हुतो बहुतै गिर- धारी। एती तो जीय में ज्वाल रही जब छाती धरे रहै पातौ तिहारो॥ २२५ ॥ उपालम्भ यथा --कबिता मुख विजराज अधिकारी मखतूल अल- कानि को है सासों बिन काज दुख लहिये । नैन श्रुतिसेवी सर 8 के उर लागत है नाक ॥