पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/८२

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शृङ्गारनिर्णय । 68 यथा वित्त कहि कहि प्यारी अबै चढ़ती अटारिन पै काहि अवलोक्यो यह कैसो भयो ढंग है? । और भोर तकति चकति उचकति दास खरी सखि पास पै न जाने कोड संग है ॥ थकि रहौ दौडि पग परत धरनि नीठि रोमनि उमग भो बदलि गयो रङ्ग है। नैन छलको है बर बैन बलकोहैं औ कपोल फलको हैं भलको हैं अये अङ्ग हैं ॥२३॥ विभिचारी भेद। निर्वेद ग्लानि शंकर असूया औ मदश्रम धालस दौनता चिन्ता मोह स्मृति धृति जानि। बौड़ा चपलता हर्ष आवेग जड़ता बिखाद कुत- कराठा निद्रा गर्ब अप्समार मानि ॥ स्वपन बि- बीच अमरख अबहिस्था गनि उग्रता श्री मति व्याधि उन्माद भरम पानि । चास औ बितर्क व्यभिचारी भाव तेतिस ये सिगरे रसनि के स- हायक से पहिचानि ॥ २३८ । यथा कबित। सुमिरि सकुचि न थिराति सकि वसति