पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/८५

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८४ 1 शृङ्गारनिर्णय। तर अतन ओप मालक ॥ तैसे अंग अंगन खुले हैं खेदजलकन खुली अलकन खरी खरी छवि छल कैं। अधखुली ऑगी हद अधखुली नखरेख अधखुली हांसी तैसी अधखुली पल के ॥ २४५॥ हाव भेद दोहा। अलंकार बनितान के पाय संजोग सिंगार होत हाब दस भांति को ताको सुनो प्रकार ॥ लौलाललितबिलासकिलकिंचितबिहिसाबकित्ता मोट्टाबूत कुहमिति बिब्बोक बिमोहित मित्त ॥ लीला हाच लक्षन दोहा। स्वांग केलि को करत हैं जहां हास्य रसभाव । दंपति सुख क्रीड़ा निरखि कहिये लोला हाव । यथा कबिता चाँदनी में चैत को सकल जबारी बारी दास मिलि रासरस खेलन भुलानी है ! राधे मोर मुकुट लकुट बनमाल धरि धरि लै करत वहां अकाह कहानी है ॥ त्योंही तियरूप हरि आदू तहि धाद धरि कहिले दिसौहे चलो बो-