पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/८७

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शृङ्गारनिर्णय। xnxxSSCcom लावत रङ्ग लाल आवत मतङ्ग चाल लौने साल संखिया। भागभरी भामिनी सोहाग भरी सारी सुही माग भरी मोती अजुराम भरी अँखिया । सुकुमारता यथा-सवैया। घाघरो मौन सो सारी महीन सौपीन नि- तबनि भार उठ्यो खचि। दास सुबास सिँगार सिँगारति बोझनि जपर बोझ उठ मचि खेद मुखचन्दनि चे डग हैक धरे महि फूलनि सो सचि। जात है पकन बारि बयारि सो वा सुकुमारि को लङ्क लला लचि ॥ २५३ ॥ बिलासहाव लक्षण दोहा। बोलनि हँसनि बिलोकिबो और भृकुटि को भाव क्योहूं चकित सुभाव जहँ मो बिलास है हाव । यथा कविता आदरस आगे धरि आँगन में बैठी बाल इन्दु से बदन को बनाव दरसति है भौंहन मरोरि मोरि अधर सकोरि नाक अलक सुधा- रति कपोल परसति है। सखी व्यंग्य बोलि को -