पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/८८

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शृङ्गारनिर्णय उठावति बिहँसि च चोलीतर सुखमा अमोली सरसति है। खुलित पयोधर प्रवास बस दास नन्दनन्द जू के नैननि अनंद बरमति है ॥२५५॥ किलकिञ्चितहाक -दोहा। हरष बिषाद अमादि जो हिये होत बहु भाव । भाव सबल शृङ्गार को सो किलकिञ्चितहाव । यथा कविता कान्हर कटाच्छन कौ नाय भरि लाई बाल बैठौहो जहा वृषभान महरानी है ! दास हुन साधन की पूतरी लो भारि ग पूतरौ घुमरि बाही ओर ठहरानी है।कती अनाकानी के ज- मानी अगिरानी मैं न अन्तर की पौर वह रूप बहरानी है। थकी यहारानी छविछकी छहरानी धकधको धहरानी जिमि लकी लहरानी है। चकितहाव यथा- आज को कौतुक देखिबे को हो कहा क. हिये सजनी तू कहा रही। कैसी महाकवि छाये अनेक छबीली छकाय हितै अहित रही। भोट सवैया।