पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९०

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शृङ्गारनिर्णय बथा कविता काहे को कपोलनि कलिन क देखावतो है कलिका सुभत्रन को अमल हथौटि है। प्रा- भरन जाल सब अंगन सँवारि कै अनंग की अनीसी कत राखति अगोटि है ॥ दास भनि काहे को अन्यास दरसावती भयावन भुगिनि सी लेनी लौटि लौटि है । हम ऐसो मासिक अनेकन के मारिवे को कौल नैनी केवल कटा- तेरी कोटि है ॥ २६२ ।। फेरि फेरि हरि हेरि करि करि अभिलाख लाख लाख उपमा विचारत है कहने । बिधिहि मनावै जो घनेरे दृग पावै तौ चहत याही संतत निहारतही रहने' ॥ निमिति निमिखि दास रोझत निहाल होत लूटे लेत मानो लाख को. टिनो लहने । एरी बाल तेरे भाल चंदन के लेप आगे लोपिजात और के हजारन के गहने ।। मोहाइतहाव लक्षण - दोहा । अनचाही बाहिर प्रगट मन मिलाप की घात। मोहात तासों कहैं प्रेम उदीपति बात ॥२६४॥