पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९१

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शृङ्गारनिर्माय यथा मवैया। पिय प्रात क्रिया करें आँगन में तिय बैठी सुजेठिन के यल मैं । सुख के सुचि ते उम सुवा बहरावै अँभादून के छल में ॥ न अधा- नौ जज सिगरी निसि दास जू कामकलानि कियो कल मैं। अंखियां झारिखयां ललक फिरि बूड़ने को हरि को छबि के जल में ॥ २६५ ।। मोहि न देखो अकेलिये दास जू घाटहू बा- टहू लोग भरै सो। बोलि उठौ नौखरै से लै नाम तौ लागि है आपनो दाउ अनेसो ॥ कान्ह कु- बानि सँभारे रहो निज वैसी नहीं तुम चाहत जैसो ! ऐबो इतै करी लेन दही को चलैबो कहीं को कहीं कर कैसो ॥ २६६ ॥ कुमित लक्षण-दोहा। के लि कलह को कहत हैं हाव कुमित मित्त । कछु दुखले सुखसो सन्यौ जहँ नायक को चित्त। यथा सवैया। रुखौ छै जैबो पियूख बगारिबो बंक बिलो-