पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९७

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खात शृङ्गारनिर्णया दुहुंन के गल मैं। राधे जैन पैरत गोविन्द तन पानिप मैं पैरत गोविन्द नैन राधे रूप जल मैं स्वप्न यथा- सवैया। मोहन पायो यहां सपने मुमुकात औ बिनोद सो बोरो। बैठी हुतौ परजङ्क में हौंहूं उठी मिलबे कहँ के मन धीरो।। ऐसे में दास बिसासिन दासी जगायो डोलाय किवार जीरो। झूठो भयो मिलिबो ब्रजनाथ कोएरौ गयो गिरि हाथ की हीरो॥ २८॥ छाया यथा। आज सवारहीं नन्द कुमार हुते उत न्हात कलिन्दजा माही । अपर आदू तू ठाढ़ी उतै कछु जाय परी जल में परछाहौ। तातें है मो- हित श्रीमनमोहन दास दसा बरनी मोहि पाही। जानति हौ बिन तोहि मिले बजनौवन को अब जौवन नाही ॥ २८८ ॥ मायादर्शन यथा । कालि जु तेरी अटा की दरी मैं खरो हुसौ