पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९९

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हारनिर्णय । कै सुरन उर आनते ॥ चन्द अरबिन्दनि मलि- न्दनि सो दास मुख नैन कुचकान्ति से सुने हो नेह ठानते । तन मन प्रानन बसौये सौ रइति हो कहति हो कि कान्ह सोहिं कैसे पहिचानते विरह लक्षण -दोहा । मिलन होत कबहूं छिनक बिछुरन होत सदाहि। तिहि अन्तर के टुखन को बिरह गुनो मन माहि॥ यथा कविता जब से मिलाप करि कैलिन कलाप करि आनंद अलाप करि पाये रसलौन जू । तब तें तो दूनो मन होत छिन छिन छीन पूनो को कला ज्यों दिन दिन होति दोन लू ॥ दास जू सतावन असनु अति लाग्यो अब ज्यावन-जतन वाकी तुमही अधीन जू । ऐसोई जो हिरदै को निस्दै बिनारो हो तो काहे को सिधारे उस प्यारे परवीन जू ॥ २६४ ॥ मानवियोग लक्ष टोहा। जहँ दूरषा अपराध ते पिथ तिय ठानै मान बढ़ वियोग हसहूं दसह मानबिरह सो जान । towe