पृष्ठ:शैवसर्वस्व.pdf/१०

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वस्त्र उपजाना--कैसा ही बोझ उठाना हो, कैसे ही शीत उष्ण वर्षा सब के वन बीहड़ में जाना हो, कभी हिम्मत न हारना--मर जाने पर भी पृथ्वी सीचने को पुर, लोगों की पद रक्षा के लिए जूती, वस्त्राभरण धरने को संदूक, कठिन वस्तु जोड़ने को सरेस वृषभ ही से प्राप्त होता है यदि हम भी ऐसे ही बन जायें कि अपने दुख सुख की चिंता न कर के संसार के उपकार में धैर्य के साथ श्रम करते रहें! जगत के हितार्थ कहीं जाना हो कुछ ही करना हो कभी हिचिर मिचिर न करें! कुछ आचरण रक्खें कि हमारे मरणानंतर भी हमारे किए हुए कामों तथा लिखे हुए बचनों में पृथ्वी के लोगों के हृदय प्रेम जल से सिंचित हों, लोग स्वदेशोन्नति के पथावलंबन में सहारा पावें, देश भाई अपनी श्रद्धा रूपी पूंजी का आधार बनावैं, तथा पाषाण सदृश चित्त वाले भी आपस का मेल सीखें तभी हम विश्वनाथ के प्यारे होंगे! तभी वह प्रेमदेव हमारे हृदय में आरूढ़ होगा। जिसे यह सब बातें स्वीकृत हैं उसे शिवदर्शन दुरलभ नहीं है यद्यपि शिवमंदिर में गणेश-सूर्य-भैरवादि की प्रतिमा भी कहीं २ देख पड़ती हैं पर उन के मुख्य पार्षद यही हैं दूसरे देवताओं के मंदिर अलग भी बनते हैं अत: उन का वर्णन यहां पर विशेष रूप से आवश्यक नहीं है इस से हमारे पाठकों को शिवदर्शन की ओर झुकना चाहिए पर यदि केवल बुद्धि के नेत्रों से देखिएगा तो पत्थर देखिएगा! हां यदि प्रेम की आंखें हों तो उस अप्रतिम की प्रतिमा तुम्हारे आगे विद्यमान है।