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यद्यपि अनेक होते हैं पर मुख्य रंग तीन ही हैं ? श्वेत २ रक्त ३ श्याम और सब इन्हीं का विकार हैं हम से इन्हीं का वर्णन आवश्यक है उस में------

पहिले श्वेत रंग की प्रतिमा में यह मूवित होता है कि परमेश्वर शुद्ध एवं स्वच्छ है ' शुद्धमपापबिद्ध ' उसकी किस बात में किसी का कुछ मेल नहीं है वुह ' वहेदहुला शरीक ' है पर सभी उस के आश्रित है' जैसे उजला रंग सब रंगों का आश्रय है वैसे ही सब का आश्रय परब्रह्म है ! सर्वेरप्ताश्च भावाश्च तरंगा दूब वारिधौ थी । उत्पध्य वीलियंते यत्र सः प्रेम संज्ञकः वुह विगुणातीत तो उर्दू पर चिगुणालय भी उसके बिना कोई नहीं है औ यदि उसे सतोगुणमय भी कहे ( सतोगुण श्वेत है ) तो कोई बेअदबी नहीं है ।

दूसरा लाल रंग रजोगुण का द्योतक है यह कौन कह सकता है कि यह संसार भर का ऐश्वर्य किसी अन्य का हैं कविता के आचार्यों ने अनुराग का भी अरुण वरण वर्णन किया है फिर अनुराग देव का रंग और क्या होगा ? काले रंग का तात्पर्य सभी सोच सकते हैं कि सब से पक्का यही हैं ! इसपर दूसरा रंग नहीं चढ़ता ! योंही प्रेम देव सब से अधिक पक्के है उन पर दूसरे का रंग क्या जमेगा ? इम के सिवा दृश्यमान जगत के प्रदर्शक नेच हैं उन की पुतली काली होती है ! भीतर का प्रकाश का प्रज्ञान है उस की प्रकाशिनीविद्या है जिसकी सारी पुस्तके काली ही स्याहौ से लिखी जाती हैं ! फिर कहिए जिसे भीतर बाहर का