पृष्ठ:शैवसर्वस्व.pdf/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[ १५ ]


जासकें न नहीं कहते बने और हां कहना भी ठीक हैं तथा नहीं कहना भी ठीक है 'का कहिए कहते न बने कुछ है कि नहीं कछु हैन न नहीं है' क्योंकि ईश्वर तो मन वचनादिका बिषय ही नही है यहां केवल अनुभव का काम है इसी भांति शिव मूर्ति भी समझ लीजिए कुछ नहीं है तो भी सभी कुछ है ! वास्तव में यह विषय ऐसा है कि जितना सोचा समझा कहा जाय उतनाही बढ़ता जायगा, बकनेवाला जन्मभर बके पर सुननेवाला यही जानेगा कि अभी श्री गणेशायनमः हुई है । इसी से महात्मा लोग कह गए हैं कि 'ईश्वर को बाद में न ढूंढ़ो वरंच विश्वास में' इसलिए हम भी उत्तम समझते हैं कि सावयव मूर्तियों के वर्णन की ओर झुकें ! क्योंदि यदि पाठकगण विश्वास साथ भजन करेंगे तो आप उस रूप का स्वरूप समझने लगेंगे हम रूपवान की उपासक हैं हमें अरूप से क्या ! हमारे लिए तो उन्हें भी रूप धारण करना पड़ता है !

जानना चाहिए कि जो जैसा होता है उम्र की कल्पना भी वैसी ही होती है ! यह संसार का स्वभाविक धर्म हैं ! जो वस्तु हमारे आस पास हैं उन्ही पर हमारी बुद्धि दौड़ती है ! फारस अरब और इंगलिस्तान के कवि जब संसार की अनित्यता का वर्णन करने लगेंगे तब कविस्तान का नक्शा खीचेंगे क्योंकि उनके यहां स्त्रशान होते ही नहीं हैं वे यह न कहें तो क्या कहें कि (कि बड़े २ बादशाह खाक में दबे पड़े हैं यदि कब्र का तख़ता उठाकर