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आप चार वेदों में पाइएमा पर यह मत समझिए कि वेद विद्या ही से उनका दर्शन भी मिल जायगा ! जो कुछ चार वेद बतलाते हैं उस से भी उन का रूप गुण अधिक है ! वेद उन की वाणी हैं पर चार पुस्तकों ही पर उन की वाणी समाप्त नहीं हो गई ! एक सुख और है एवं वह सब के ऊपर है ! जिस की मधुर वाणी केवल प्रेमी सुनते हैं ! विद्याभिमानो जन बहुत होगा चार वेद द्वारा चार फल ( अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ) प्राप्त कर लेंगे ! पर वुह पंचम् सुख संबंधी सुख औरों के लिए है ! जिसने चारो ओर से अपना मुख फेर लिया है वही प्रेममय सुख का दर्शन पाता है ।

तीन नेत्र से यह अभिप्राय है कि वह वैलोक्य एवं विकास के लोगों के विगुणात्मक (सात्विकं राजस तामस) तीनों प्रकार के ( कायिक वाचक मानसिक ) भावों को देखते हैं ! सूर्य, चंद्रमा, अग्नि उन के नेत्र हैं अर्थात् उन का विचार करने वाले के हृदय में प्रकाश होता है ! उन की आंखो देखने वाले ( सर्वथा उन्हीं के आश्रित ) को आनंद मिलता है ! शीतलता प्राप्त होती है ! उन के विमुख जला करते हैं ! या यों समझ लो कि वे आंख उठाते ही हमारे पाप ताप शाप दुःख दुर्गुण दुराशा सब को भस्म कर देते हैं।

उन के मस्तक पर दुइज का चंद्रमा है अर्थात् जो कोई अपने को महा क्षीण अति दीन समझता है ' पाप पीनस्व दीनस्व कृष्ण एक गतिर्मम् ' जिस के मन बचन से सदा निकला करता है ! वही भगवान की शिरोधार्य है ! ‘बंदों सीताराम पौद जिन्हें परम प्रिय खिन्न' ।